मंदिरों के महागढ़ नाम से मशहूर जूनागढ़ आकर देखें खूबसूरती का अनोखा नजारा

गिरनार पहाड़ियों की गोद में बसा हुआ जूनागढ़ गुजरात का सबसे ऊंचा स्थल है। इस क्षेत्र में आठ सौ से ज्यादा हिंदू और जैन मंदिर हैं, इसलिए इसे मंदिरों का महागढ़ भी कहा जा सकता है। जानेंगे यहां आएं तो किन जगहों की सैर को बिल्कुल न करें मिस। भवनाथ मंदिर गिरनार की तलहटी में
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गिरनार पहाड़ियों की गोद में बसा हुआ जूनागढ़ गुजरात का सबसे ऊंचा स्थल है। इस क्षेत्र में आठ सौ से ज्यादा हिंदू और जैन मंदिर हैं, इसलिए इसे मंदिरों का महागढ़ भी कहा जा सकता है। जानेंगे यहां आएं तो किन जगहों की सैर को बिल्कुल न करें मिस।

भवनाथ मंदिर

गिरनार की तलहटी में स्थित और नागा साधुओं का संसार माना जाने वाला यह शिव मंदिर महाशिवरात्रि के दिन एक मिनी कुंभ मेले में परिवर्तित हो जाता है। विभिन्न जगहों से आए नागा साधु मंदिर में शिवजी की पूजा करते हैं और उनके हर-हर महादेव की नाद से गिरनार घाटी गूंज उठती है।

कालिका मंदिर

इसे अघोरियों का मंदिर माना जाता है। लाल आंखों, बंधी हुई जटाओं और शरीर पर मली हुई भस्म के साथ अघोरी साधुओं की टोली स्वयं शिवजी के भूतों की टोली जैसी प्रतीत होती है। महाकाली और शिवजी के भक्त भवनाथ मंदिर में दर्शन करने के बाद यहां जरूर आते हैं।

दत्तात्रेय मंदिर

गिरनार के सबसे ऊंचे शिखर पर विराजमान श्री दत्तात्रेय का छोटा सा मंदिर बादलों भरी घाटी में खिले फूल सा प्रतीत होता है।

उपरकोट के वाव यानि कुएं

गुजरात और राजस्थान तो अपनी वाव और बावलियों के लिए मशहूर है, किंतु सोरठ में ज्यादातर कुओं यानि वाव की कहानियां मजेदार हैं।

अडी कड़ी वाव

नौ परतों वाले इस गहरे कुएं में पत्थरों की सीढ़ियां उतर कर जाना पड़ता है। इसके निर्माण से जुड़ी कहानी है कि महीनों की खुदाई के बाद भी जब कुएं में पानी नहीं निकला, तब एक ज्योतिषी की सलाह पर दो बहनों अड़ी औक कड़ी ने कुएं में कूदकर बलिदान देने का फैसला किया था। बलिदान के साथ ही कुंआ पानी से भर गया और आज तक यह सूखा नहीं है। दोनों बहनों की याद में कोई पास के पेड़ पर चूड़ियां और चुनरी बांधता है तो कोई प्रार्थना करता है।

सोरठ राज्य का किला

उपरकोट जूनागढ़ शहर का स्थापना से पहले गुजरात में रजवाड़े हुआ करते थे और सौराष्ट्र प्रदेश की यह नगर सोरठ राज्य का एक अहम हिस्सा थी। मौर्य राजाओं द्वारा बनवाए गए इस किले को हर राजवंश ने अपने वास्तुशिल्पों से तराशा और इस किले को अभेध गढ़ का खिताब दिलाया। जिन दुश्मनों ने किले की दीवार भेदने की कोशिश की, वे नीचे बनई खाई में गिरकर मगमच्छों का भोजन बन गए।