कभी सोचा है, क्यों 12 साल में एक ही बार लगता है कुंभ का मेला?

नया साल शुरू होने को है और सर्दियों ने भी दस्तक दे ही दी है। जहां साल के अंत में सबका ध्यान न्यू ईयर का जश्न मनाने पर है, तो वहीं उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में साल 2019 में शुरु होने वाले अर्ध कुंभ मेले की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। जी हां, जनवरी साल
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नया साल शुरू होने को है और सर्दियों ने भी दस्तक दे ही दी है। जहां साल के अंत में सबका ध्यान न्यू ईयर का जश्न मनाने पर है, तो वहीं उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में साल 2019 में शुरु होने वाले अर्ध कुंभ मेले की तैयारियां ज़ोरों पर हैं। जी हां, जनवरी साल 2019 में अर्ध कुंभ मेले का आगाज़ होने वाला है। हिंदुओं में कुंभ मेले का बहुत महत्व होता है। इस मेले की तैयारियां कई महिनों पहले ही शुरु हो जाती है। ना सिर्फ आम जनता, बल्कि सरकार भी कुंभ से जुड़ी हर छोटी से छोटी चीज़ का ख्याल रखती है। क्योंकि ये हिंदू धर्म का सबसे बड़ा मेला है, इसलिए लोग लाखों की तादाद में आते हैं। इतना ही नहीं, विदेश पर्यटक भी इस मेले में आते हैं। अर्ध कुंभ हर 6 साल मे एक बार आता है। क्यों कहते हैं इसे अर्ध कुंभ  मेला और लगता है, जिसे अर्ध कुंभ कहा जाता है। कुंभ एक संस्कृत शब्द है, जिसका हिंदी में अर्थ कलश होता है।  क्या होता है अर्ध कुंभ के मेले में? हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और सबसे बड़े मेले, कुंभ में दुनिया भर से श्रद्धालु स्नान करने आते हैं। उनका विश्वास होता है कि कुंभ के इस पावन मेले में स्नान करने से उनके सारे पाप धुल जाएंगे। कुंभ मेले का आयोजन देश के 4 स्थलों में किया जाता है। ये स्थल प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। इन सभी जगहों पर हर 12 साल में एक बार कुंभ के मेले का आयोजन होता है। लेकिन प्रयागराज में इसके अलावा हर 6 साल में एक बार अर्ध कुंभ मेले का आयोजन भी होता है। अर्ध कुंभ के समय इलाहाबाद की रौनक ही अलग होती है। इन सबके बीच मेले में साधू-संत, पुजारी और अघोरियों की उपस्थिती यहां के भव्य पंडालों की शोभा बढ़ा देते हैं और इसे किसी आम मेले से सबसे खास में बदल देती है। रात की चकाचौंध को देखकर तो किसी का भी यहां हमेशा बस जाने का दिल करेगा। इतना ही नहीं, भक्तों के अलावा बड़े-बड़े वैज्ञानिक कुंभ में आते हैं, अपने नए शोधों को दिशा देने। किस दिन कर सकते हैं कुंभ में स्नान अर्ध कुंभ मेला मकरसंक्राती के दिन आरंभ होता है। मकर संक्रांति के दिन इस मेले का पहला स्नान होता है। इस बार पहला स्नान 14-15 जनवरी 2019 को होगा। इस दिन स्नान करने का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। कहा जाता है कि कोई भी किसी व्यक्ति इस मेले के दौरान मकर संक्रांति के दिन स्नान करता है तो उसकी आत्मा की शुद्धी हो जाती है और मृत्यु के समय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। तो वहीं अर्ध कुंभ का दूसरा स्नान पौष पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस साल ये 21 जनवरी 2019 को होगा। कुंभ का मुख्य स्नान मेले का तीसरा स्नान होता है, ये स्नान माघी मौनी अमावस्या के दिन किया जाता है। साल 2019 में ये 4 फरवरी को होगा। अगला स्नान अर्ध कुंभ का चौथा स्नान है, और ये बसंत पंचमी की तिथि में होता है, 2019 में ये 10 फरवरी को किया जाएगा। इसके अलावा मेले का आखिरी स्नान मौनी पूर्णिमा या शिवरात्रि को होता है। जो इस साल 4 मार्च को होगी। इससे पहले अर्ध कुंभ मेला साल 2013 में आयोजित हुआ था। कुंभ का पौराणिक महत्व यूं तो कुंभ को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं बताई जाती है। जिनमें से एक कहानी है, देव और दानवों की। कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के शाप देने के बाद इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए। जिसके बाद दानवों ने देवताओं पर हमला कर उन्हें हरा दिया। इसके बाद सारे देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या के निवारण के लिए गए। विष्णु भगवान ने उन्हें दानवों के साथ मिलकर क्षीरसागर से अमृत निकालने को कहा। देवताओं ने भगवान विष्षु का कहा माना और इंद्रपुत्र ‘जयंत’ को अमृत-कलश लेकर आकाश में उड़ जाने का इशारा किया। इसके बाद राक्शसों ने जयंत का पीछा किया और काफी देर बाद जयंत को बीच रास्ते में ही पकड़ा। अमृत कलश के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक लगातार युद्ध होता रहा। 12 दिन चले इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों में कलश से अमृत बूँदें छलक गिरी थीं। ये 4 स्थान हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक हैं। कहते हैं, देवताओं के ये 12 दिन मनुष्य के लिए 12 साल के बराबर थे। इसलिए पृथ्वी पर हर 12 साल में कुंभ का आयोजन किया जाता है।