‘Hindu-Sikh-Buddhism’ को निशाना बनाने वालों पर कड़ा रूख अपनाएं’

भारत ने संयुक्त राष्ट्र से आह्वान किया है कि वह हिंदुत्व से घृणा करने वालों और सिख-बौद्ध धर्म को निशाना बनाने वाले हिंसक कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए। भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन में प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने बुधवार को कहा कि ये निकाय बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और सिख धर्म के खिलाफ
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‘Hindu-Sikh-Buddhism’ को निशाना बनाने वालों पर कड़ा रूख अपनाएं’

भारत ने संयुक्त राष्ट्र से आह्वान किया है कि वह हिंदुत्व से घृणा करने वालों और सिख-बौद्ध धर्म को निशाना बनाने वाले हिंसक कट्टरपंथियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए।

भारत के संयुक्त राष्ट्र मिशन में प्रथम सचिव आशीष शर्मा ने बुधवार को कहा कि ये निकाय बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और सिख धर्म के खिलाफ घृणा और हिंसा को स्वीकार करने में विफल रहा है।

उन्होंने ‘फ्रीडम ऑफ रिलीजन या बिलीफ’ पर प्रस्ताव का उल्लेख करते हुए कहा, “हम पूरी तरह से सहमत हैं कि यहूदी-विरोधी, इस्लामफोबिया और ईसाई-विरोधी कृत्यों की निंदा करने की जरूरत है और भारत इस तरह के कृत्यों की ²ढ़ता से निंदा करता है। लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव केवल इन तीन अब्राहमिक धर्मों – यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम पर हैं। ऐसी चयनात्मकता क्यों? कट्टरपंथियों द्वारा प्रतिष्ठित बामियान में बुद्ध की प्रतिमा को तोड़ने, अफगानिस्तान में सिख गुरुद्वारे पर आतंकवादी बमबारी करने जिसमें 25 सिख उपासक मारे गए और हिंदू-बौद्ध मंदिरों के विनाश जैसे कृत्यों की भी इसी तरह निंदा होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र एक ऐसा निकाय नहीं है जिसे किसी धर्म का पक्ष लेना चाहिए।”

बता दें कि केवल तीन अब्राहमिक धर्मों के नाम का ड्राफ्ट 33 यूरोपीय देशों ने प्रायोजित किया था जो मुख्य रूप से ईसाई हैं और कोई भी इस्लामिक देश या इजरायल इसे प्रायोजित करने में शामिल नहीं हुआ। इस ड्राफ्ट को पिछले महीने तीसरी समिति ने मंजूरी दी थी जो सामाजिक, मानवीय और सांस्कृतिक मुद्दों से संबंधित है।

इसमें कहा गया है कि महासभा “भेदभाव, असहिष्णुता और हिंसा के मामलों में वृद्धि को लेकर गहरी चिंता में है। लेकिन इसमें केवल इस्लामोफोबिया, यहूदी-विरोधी और ईसाई धर्म से प्रेरित मामलों को निर्दिष्ट किया गया है। अन्य धर्मों या मान्यताओं के लिए केवल पूर्वाग्रह न रखने का एक वाक्य लिखा गया है। जैसे अन्य धर्मों के साथ कोई असहिष्णुता का बर्ताव नहीं होता।”

शर्मा ने कहा, “कुल मिलाकर हिंदू धर्म के 1.2 अरब से अधिक, बौद्ध धर्म के 53.5 करोड़ और सिख धर्म के लगभग 3 करोड़ अनुयायी हैं। यह समय है कि इन धर्मों के खिलाफ हमलों को भी तीन अब्राहमिक धर्मों की सूची में जोड़ा जाए।”

उन्होंने आगे कहा, “शांति की संस्कृति केवल अब्राहमिक धर्मों के लिए नहीं हो सकती और जब तक इसमें चयनात्मकता रहेगी दुनिया कभी भी शांति की संस्कृति को बढ़ावा नहीं दे सकेगी। भारत केवल हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म की जन्मभूमि नहीं है, बल्कि वह भूमि भी है जहां इस्लाम, यहूदी, ईसाई और पारसी धर्म की शिक्षाओं ने भी मजबूत जड़ें जमाईं हैं और जहां इस्लाम की सूफी परंपरा पनपी है। आज दुनिया के हर प्रमुख धर्मों के लिए भारत में जगह है।”

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस