गर्भ में पल रहे शिशु पड़ पड़ता हैं शादी में देरी का खामियाजा, जाने कैसे

शादी में देरी का खामियाजा गर्भ में पल रहे शिशु को भुगतना पड़ रहा है. समय से पहले यानी प्रीमेच्योर प्रसव का खतरा बढ़ गया है. उत्तर प्रदेश में प्रीमेच्योर प्रसव के आंकड़ों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. हॉस्पिटल इनफॉरमेशन मैनेजमेंट सिस्टम (एचआईएमएस) के मुताबिक एक वर्ष पहले आठ फीसदी प्रीमेच्योर शिशुओं का जन्म
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शादी में देरी का खामियाजा गर्भ में पल रहे शिशु को भुगतना पड़ रहा है. समय से पहले यानी प्रीमेच्योर प्रसव का खतरा बढ़ गया है. उत्तर प्रदेश में प्रीमेच्योर प्रसव के आंकड़ों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. हॉस्पिटल इनफॉरमेशन मैनेजमेंट सिस्टम (एचआईएमएस) के मुताबिक एक वर्ष पहले आठ फीसदी प्रीमेच्योर शिशुओं का जन्म होता था. अब 12 फीसदी तक प्रीमेच्योर प्रसव हो रहे हैं.
यूपी में हर वर्ष 57 लाख शिशुओं का जन्म हो रहा है. नौ माह यानी 37 से 38 सप्ताह के बीच प्रसव सबसे सुरक्षित माना जाता है. मौजूदा समय में 34 सप्ताह से पहले प्रसव की घटनाएं बढ़ गई हैं. कई बार तो 28 सप्ताह में भी प्रसव हो रहे हैं. चिकित्सक गर्भवती महिला और शिशु की जान बचाने के लिए ऑपरेशन से प्रसव कराने को विवश हैं. नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) में महाप्रबंधक डाक्टर वेद प्रकाश के मुताबिक एचआईएमएस के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में 12 फीसदी प्रीमेच्योर शिशुओं का जन्म हुआ है. वहीं 2017-18 में यह आंकड़ा आठ फीसदी था. उन्होंने बताया कि समय से पूर्व जन्म लेने वाले शिशुओं को एनआईसीयू (नियोनेटल इंटेशिव केयर यूनिट) व एसएनसीयू (सिक न्यू बार्न केयर यूनिट) में रखा जाता है. प्रदेश में 68 प्रसव केन्द्र में एसएनसीयू हैं. केजीएमयू के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग (क्वीनमेरी) की डाक्टर सुजाता देव के मुताबिक 20 से 32 साल की आयु में शादी और परिवार की योजना बना लेनी चाहिए. देरी से शादी और परिवार की योजना बनाने से तमाम तरह की अड़चनें आ सकती हैं. आयु बढ़ने पर डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, थायराइड, फैट की चर्बी बढ़ जाता है. जो गर्भ में पल रहे शिशु की स्वास्थ्य के लिए घातक होता है. गर्भ में पल रहे शिशु का विकास प्रभावित होता है. उन्होंने बताया कि टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से भी प्रीमेच्योर शिशु बहुत ज्यादा संख्या में हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि केजीएमयू में प्रदेश भर से गंभीर अवस्था में गर्भवती महिलाएं रेफर होकर आ रही हैं. यहां प्रीमेच्योर शिशुओं की जन्मदर करीब 15 से 17 फीसदी है.

ये होती है समस्याएं
-प्री मेच्योर शिशु के फेफड़े पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं. शरीर को भरपूर ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है. फेफड़ों के साथ आंखों को भी नुकसान होने कि सम्भावना है. दिल पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है. शरीर का हार्मोन सिस्टम भी प्रभावित होता है.
-जन्म के बाद शिशु में रोगों से लड़ने की ताकत सामन्य बच्चों से कम रहती है. नतीजतन वह सरलता से संक्रमण की जद में आ जाता है.
-अधिक आयु में ब्याह होने पर गर्भवती महिला एनीमिया की जद में आ सकती है. शरीर निर्बल होने से भी शिशु का विकास प्रभावित होता है.
-शिशु को पीलिया हो जाता है
-दिमाग का संक्रमण और बुखार हो जाता है
-निमोनिया से स्तनपान में अड़चन आती है.