जाने फिल्मों में ग्रेडिंग सिस्टम क्या होता है और कैसे मिलती है ग्रेड

आपने अकसर फिल्मों के ग्रेडिंग सिस्टम के बारे में सुना होगा अलग अलग ग्रेड की फ़िल्में होती है। कई बी ग्रेड फिल्मों के पोस्टर भी देखे होंगे जो कि देखने एकदम अश्लील होते हैं। बॉलीवुड में बनने वाली इन फिल्मों की ग्रेडिंग कैसे की जाती है और किन मापदंडो के आधार पर इन फिल्मों को
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आपने अकसर फिल्मों के ग्रेडिंग सिस्टम के बारे में सुना होगा अलग अलग ग्रेड की फ़िल्में होती है। कई बी ग्रेड फिल्मों के पोस्टर भी देखे होंगे जो कि देखने एकदम अश्लील होते हैं। बॉलीवुड में बनने वाली इन फिल्मों की ग्रेडिंग कैसे की जाती है और किन मापदंडो के आधार पर इन फिल्मों को अलग अलग ग्रेडिंग मिलती है। आज हम आपको इस लेख में ये सब बाते बताने जा रहे हैं। मूल रूप से ग्रेडिंग का आधार फिल्मों का बजट और तकनीक पर आधारित होता है। इसके आलावा इनमे काम करने वाले कलाकारों के उपर भी निर्भर करता है किस तरह के कलाकार फिल्म में काम कर रहें हैं।

अधिक बजट वाली फिल्में जिन्हे  बनाने के लिए बेहतर तकनीक और कैमरों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें नामी कलाकार, महंगे कॉस्टयूम, बेहतर सेट्स, शानदार म्यूजिकल बैकग्राउंड, बेहतर फोटोग्राफी और एक बेहतर स्क्रिप्ट होती है। ऐसी फिल्मों को आप अपनी फैमिली के साथ देख सकते हैं।

इस श्रेणी की फिल्मों में कोई स्क्रिप्ट नहीं होती है बल्कि कहानी के नाम पर सिर्फ अश्लीलता भरी होती है। वास्तव में ऐसी फिल्में बनाने वाले निर्माता ‘देसी’ शब्द पर ज्यादा फोकस करते हैं। उन्हें ऐसा लगता है कि देसी कहानी, देसी कलाकार आदि से उन्हें ज्यादा फायदा मिल सकता है। इस तरह की फिल्में अधिकतर छोटे शहरों में रिलीज होती हैं।

‘सी’ ग्रेड की फिल्मों में काम करने वाले कलाकार बिल्कुल अज्ञात होते हैं। इनकी प्रोडक्शन वैल्यू एकदम निचले स्तर की होती है। कभी-कभी इनकी स्क्रिप्ट ही समझ नहीं आती है। यह फिल्में ‘बी’ ग्रेड की फिल्मों से छोटी होती हैं।